naye prabhat ki angdaiyiyan
जब सूरज नहीं रहेगा
मैंने सुना है,
सूरज बूढ़ा हो गया है
और बहुत दिनों तक
अब वह हमारे साथ नहीं चल सकेगा,
किसी भी दिन ऐसा होगा
कि डूबने के बाद
वह फिर नहीं निकल सकेगा।
उस दिन पेड़ों पर
चिड़ियों की चहचहाहट नहीं सुनाई देगी!
न मंदिरों में शंख और घड़ियाल बजेंगे,
न मस्जिदों से अजान की ध्वनि आयेगी।
न साँझ होगी, न सवेरा होगा
चारों ओर अँधेरा-ही-अँधेरा होगा।
यह सच है
कि हमारे प्राणों की ऊष्मा
सूरज से नहीं आयी है,
वह रहे या चला जाय,
चेतना की लौ
एक-सी ही मुस्कुरायी है,
पर प्रश्न तो यह है–
हमारी वाटिका के लिए
इतना सच्चा और वफादार माली फिर कहाँ मिलेगा!
सूरज अवकाश ले लेगा
तो जीवन का पुष्प यहाँ कैसे खिलेगा?
इतने अगणित तारों में
क्या एक भी ऐसा नहीं है
जो इस बूढ़े सूरज का स्थान ग्रहण कर सके ?
हमें ऐसे ही प्रकाश और उष्मा देता रहे !
हमारा उत्तरदायित्व इसी तरह वहन कर सके ?
1983