nupur bandhe charan

गड़ेरिये के गीत

इस घाटी का अंत कहाँ है
तारों की सित भेड़ चराता फिरता नग्न दिगंत जहाँ हैं?
जुत स्रदा यव॑ खत, भल॑ हां आता कर्भा वस्रत यहां हैं
कंचन-विरचित भवन, रत्त-मणियों का कोंष अनंत वहाँ है
दूर क्षितिज में, झुका धरा पर नभ का कुसुमित वृंत जहाँ हैं
क्या हरीतिमा में अवगुंठित वन-बाला का कंत वहाँ है?
इस घाटी का अंत कहाँ है ?