pankhuriyan gulab ki

कहें जो ‘हाँ’ तो नहीं है, ‘हाँ’ भी, ‘नहीं’ कहें तो ‘नहीं’ नहीं है
भले ही आँखों से हैं वे ओझल, खनक तो पायल की हर कहीं है

वे मिल तो लेते हैं आँखों-आँखों, नहीं भी दिल में जो कुछ कहीं है
शराब प्याले में हो न हो, पर, नशा तो पीने में कम नहीं है

गये जो आने का वादा करके, चले भी आयें कि वक़्त कम है
हदें भी हों ज़िंदगी की आगे, क़रार मिलने का पर यहीं है

क़सूर है मेरे देखने का, कि है तेरा आईना ही झूठा
कभी जो तू था तो मैं नहीं था, अभी जो मैं हूँ तो तू नहीं है

हरेक सुबह आके पोंछता है, गुलाब ! कोई तुम्हारे आँसू
भले ही पाँवों का धूल पर कुछ निशान उसका नहीं कहीं है