pankhuriyan gulab ki
तेरा दर छोड़ के जाने का कभी नाम न लूँ
यों पिला दे कि कहीं और सुबह-शाम न लूँ
मुझको नस-नस के चटकने का हो रहा है गुमान
हुक्म तेरा है कि दम भर कहीं आराम न लूँ
यों न लहरा मेरी आँखों में सुनहला आँचल
मैं हूँ मदहोश, कहीं बढ़के इसे थाम न लूँ !
तू मेरे प्यार की धड़कन तो समझता है ज़रूर
मैं भले ही कभी होंठों से तेरा नाम न लूँ
यह तो बतला कि खिलाये हैं भला क्यों ये गुलाब
है अगर ज़िद ये तेरी, इनसे कोई काम न लूँ !