ret par chamakti maniyan

जीवन, सीधी नहीं वर्तुल रेखा है।
वह इसका अंत नहीं है।
जो हमने देखा है।
यह रेखा सदा चक्कर में घूमा करती है,
कभी-कभी कुंडली मारे
नागिन-सी भी झूमा करती है;
परिधि छोटी करते जाने से
यह केंद्र में समा जायगी
और बढ़ाते जाने से
क्षितिज की अनंतता पा जायगी।
हम घेरा छोटा करें या बड़ा,
परिणाम वही होना है;
एक यदि कंचन है तो दूसरा सोना है।