ret par chamakti maniyan

सागर के ज्वार पर थिरकने के बाद
मैं ये ताल पोखरों के हिलकोरे क्यों झेलूँगा,
मैंने मणि-माणिकों से अपनी झोली भर ली है
मैं अब काँच की गोलियों से नहीं खेलूँगा।