ret par chamakti maniyan
हिमपात में भी
हरी-हरी पत्तियों से भरी
ओ नुकीली डालियो!
मुझे भी समृद्धि की यह युक्ति सिखा दो।
पर ठहरो,
मुझे नहीं चाहिए ऐसी सिद्धि
कि मेरे चारों ओर के पादप-पुंज तो
दीन, पत्रहीन निरावरण खड़े रहें
और मेरे अंग-प्रत्यंग
मणि-मोतियों से जड़े रहें।
मैं तो चाहता हूँ,
मैं भले ही सूख जाऊँ,
बाग के सभी पेड़-पौधे
हरियाली से मढ़े रहें।