sab kuchh krishnarpanam

ओ विदेशिनी !
पाटल-से अधर लाल
अंग तरुण, गौर भाल
नमित-वदन, चपल-चरण, मुक्त-केशिनी !

स्मितिमय भी अधर क्रूर
पास-पास, दूर-दूर
वचन मधुर, उर निष्ठुर, छद्म-वेशिनी!
ओ विदेशिनी !

मार्च 85