sab kuchh krishnarpanam

बैठा हूँ आकर तेरी देहली के पास
आशा-प्रत्याशा नहीं, कोई अभिलाषा नहीं

   सब से ले लिया है संन्यास

तेरी ही मधुर तान सुनता हूँ
तेरी ही धुन पर सिर धुनता हूँ
तेरे ही गुण मन में गुनता हूँ

देखता हूँ तेरा महारास

कोई अब न आये, मुझे चिंता क्या!
जग मुँह फिराये, मुझे चिंता क्या!
तिमिर घोर छाये, मुझे चिंता क्या!

चारों ओर तेरा है प्रकाश

बैठा हूँ आकर तेरी देहली के पास
आशा-प्रत्याशा नहीं, कोई अभिलाषा नहीं

   सब से ले लिया है संन्यास