sab kuchh krishnarpanam
मन का विष हरण करो हे!
वरण करो, वरण करो, वरण करो हे!
ताप-तप्त जीवन हो अभय, नाथ!
छोड़ो न हाथ कभी,
रहो सदा रजनी में साथ-साथ
छिन्न घोर तम का आवरण करो हे!
मन का विष हरण करो हे!
वरण करो, वरण करो, वरण करो हे!
मन का विष हरण करो हे!
वरण करो, वरण करो, वरण करो हे!
ताप-तप्त जीवन हो अभय, नाथ!
छोड़ो न हाथ कभी,
रहो सदा रजनी में साथ-साथ
छिन्न घोर तम का आवरण करो हे!
मन का विष हरण करो हे!
वरण करो, वरण करो, वरण करो हे!