sau gulab khile
हमारे सामने आओ कि हम भी देख सकें
नज़र नज़र से मिलाओ कि हम भी देख सकें
हँसी तो होंठों पे लाओ कि हम भी देख सकें
कुछ ऐसे प्यार दिखाओ कि हम भी देख सकें
ये कैसा खेल है आँखों की ओट होता रहे !
कभी तो परदा हटाओ कि हम भी देख सकें
हमारे बाग़ में उतरी हैं बिजलियाँ कैसी
हटो भी काली घटाओ ! कि हम भी देख सकें
गये किधर वे उमंगोभरे बहार के दिन !
दिया कोई तो जलाओ कि हम भी देख सकें
सुना है तुमने उगाये हैं पुतलियों में गुलाब
हमें भी पास बुलाओ कि हम भी देख सकें