sau gulab khile

हुआ है प्यार भी ऐसे ही कभी साँझ ढले
कि जैसे चाँद निकल आये और पता न चले

कसो तो ऐसे कि जीवन के तार टूट न जायँ
पड़े जो चोट कहीं पर तो रागिनी ही ढले

मिले न हमको भले उनके प्यार की ख़ुशबू
नज़र से मिल ही लिया करते हैं गले से गले

हज़ार पाँव लड़खड़ाये ज़िंदगी के, मगर
चलते ही आये हैं उन चितवनों की छाँह तले

गुलाब बाग़ में करते रहे हैं सबसे निबाह
चुभे जो पाँव में काँटें तो वे भी साथ चले