sau gulab khile
किसीकी शबनमी आँखों में झिलमिलाये हुए
एक अरसा हो गया फूलों की चोट खाये हुए
किया है प्यार बिना देखे, भले ही उनसे
हम उस गली में न जायेंगे बेबुलाये हुए
करोगे याद भी हमको हमारे बाद कभी
अभी जो छोड़ के जाते हो मुँह फिराये हुए
मुक़ाम ऐसे भी आये हैं ज़िंदगी में कई
हम अपना समझे थे जिनको वही पराये हुए
भले ही तेज़ हो आँधी, बचाके रख लो इन्हें
न जल सकेंगे कभी फिर दिये, बुझाये हुए
सिवा गुलाब के रंगत है किसकी लाल यहाँ !
बहुत हैं देखे तपाये हुए, सताये हुए