sau gulab khile
कोई साथी भी नहीं, कोई सहारा भी नहीं
हम वहाँ हैं कि जहाँ प्यार हमारा भी नहीं
कोई गुत्थी कभी जीवन की न सुलझी हमसे
दो घड़ी आपकी अलकों को सँवारा भी नहीं
प्यार की याद कभी हमसे भुलायी न गयी
प्यार में दिल कभी हारा भी है, हारा भी नहीं
चूमते सर को गये सैकड़ों आँधी-तूफ़ान
उनको जीवन की तबाही में पुकारा भी नहीं
तेज़ लहरों के झकोरों में बहे जाते हैं हम
हाथ में आपके आँचल का किनारा भी नहीं
भेद तो यह कभी खुलता कि दूसरा है कौन
ज़िंदगी ने कभी घूँघट को उतारा भी नहीं
यों तो इस बाग़ में हर डाल पे हँसते हैं गुलाब
मुस्कुराने का मगर, हमको इशारा भी नहीं !