sau gulab khile
खनक कुछ कम भी हो तो कम नहीं है
ये मन का राग है, सरगम नहीं है
ख़ुशी के साथ जायें आप, जायें
नहीं है आँख मेरी नम, नहीं है
किनारों पर किनारे आ रहे हैं
मुझे अब डूबने का ग़म नहीं है
मुझे देखा जो, थोड़ा मुस्कुराये
दया इतनी भी उनकी कम नहीं है
कहीं दो-एक खिल भी जायँ, तो क्या !
गुलाब ! अब आपका मौसम नहीं है