sau gulab khile
निराश प्राण में आशा के सुर सजाते चलो
अँधेरी रात है, कोई दिया जलाते चलो
दिलों में प्यार की पीड़ा नयी जगाते चलो
कुछ और रूप की दुनिया को जगमगाते चलो
किरन-किरन में मधुर बाँसुरी बजाते चलो
कली-कली के कलेजे को गुदगुदाते चलो
हमारे दिल की ही कमज़ोरियों पे मत जाओ
हमारे प्यार का भी ज़ोर आजमाते चलो
कुछ इस बहाने ही आयी तो रोशनी घर में
गले लगाके बिजलियों को मुस्कुराते चलो
कहाँ से लौ उतर आयी है, इसको मत पूछो
तुम्हें तो बस कि दिये से दिया जलाते चलो
कहीं पड़ाव के पहले ही नींद घेर न ले
कुछ और तेज़ सुरों में क़दम बढ़ाते चलो
कभी तो उनको लुभा लेंगी तड़पनें इसकी
ये दिल का साज़ जहाँ तक बजे, बजाते चलो
कटेगा इससे भी कुछ तो हवा का सन्नाटा
अकेलेपन में कोई गीत गुनगुनाते चलो
गुलाब ! बाग़ में तुमसे ही है बहार आयी
सुगंध प्यार की निकलो जिधर, लुटाते चलो