sau gulab khile

भले ही दिल न मिले आँख चार होती रही
छुरी की धार कलेजे के पार होती रही

सुना है आपने हमको किया था याद कभी
कसक-सी दिल में कहीं बार-बार होती रही

हमारा जुर्म यही था कि उनको देख लिया
इस एक बात की चर्चा हज़ार होती रही

हमारे पहले भी आये थे और लोग यहाँ
घटा उठी थी, मगर तार-तार होती रही

चढ़ा था प्यार का कुछ ऐसा रंग आँखों पर
कली ख़ुद अपनी नज़र का शिकार होती रही

कभी गुलाब को देखा न उस तरह से खिला
भले ही बाग़ में रस की फुहार होती रही