sau gulab khile
भोर होनी थी होके रही
मेरे सपनों को खोके रही
आपने तो बहुत छूट दी
प्यास मेरी डुबोके रही
प्रीत ने कब किसीकी सुनी !
अपना आँचल भिगोके रही
ज़िंदगी थी किरन प्यार की
तीर पर आँसुओं के रही
सारे उपवन पे छाये गुलाब
गंध कब किसके रोके, रही !
भोर होनी थी होके रही
मेरे सपनों को खोके रही
आपने तो बहुत छूट दी
प्यास मेरी डुबोके रही
प्रीत ने कब किसीकी सुनी !
अपना आँचल भिगोके रही
ज़िंदगी थी किरन प्यार की
तीर पर आँसुओं के रही
सारे उपवन पे छाये गुलाब
गंध कब किसके रोके, रही !