sau gulab khile
मेरी चुप्पी भी उनको भा ही गयी
यह उदासी भी रंग ला ही गयी
है अँधेरा ही अँधेरा सब ओर
ज़िंदगी फिर भी मुस्कुरा ही गयी
यों तो हर चीज़ से खिंचे हैं हम
क्या करेंगे जो कोई भा ही गयी !
कोई पहुँची नहीं किनारे तक
प्यार की हर लहर डुबा ही गयी
अब तो छाया भी साथ छोड़ रही
धूप जीवन की सर पे आ ही गयी
ख़ाक़ होकर भी खिल रहे हैं गुलाब
मौत इसमें भी मात खा ही गयी