sau gulab khile
यह तो वेला है ढलती रही
उम्र भर किसकी चलती रही !
हम किसी और से क्या कहें !
जब ये क़िस्मत ही छलती रही
प्यार ने झट उन्हें पा लिया
साधना हाथ मलती रही
एक लौ आँधियों से बुझी
और बुझकर भी जलती रही
फिर न आये पलटकर गुलाब
रात करवट बदलती रही