seepi rachit ret
इस दुर्बल तन के मिटने पर
इस दुर्बल तन के मिटने पर इतना मत रोना तुम, हाय!
जिससे कमल-सदृश ये दोनों सुंदर आँखें फूल उठें
अंगारों-सी, यही बहुत है गोरा मुख कुछ नत हो जाय,
दो आँसू के कण वरौणियों की नोकों में झूल उठें।
पछताना मत, रूठ गयी थी क्यों, अवसर पर क्यों न मनी,
प्यार किया क्यों नहीं रुग्ण शिशु-से भोलेभाले मुख को
चूम-चूमकर, जीवन-पथ पर रही सदा क्यों खिँची-तनी,
बात-बात में क्यों पहुँचायी ठेस सरल मन के सुख को।
करके याद चिढ़ानेवाली मेरी जलती बातों को,
गर्वभरे कटु व्यंग्य, अकारण रोष, भावना का अपमान,
तिरस्कार, हठ, अत्याचार नींद से भारी रातों को
जगा विवश कर, अश्रुकणों की हँसी उड़ाना अभिनय मान,
अपने मन को बहला लेना चतुर दार्शनिक-सा दुख को
सुख कह कर, रोने से होगा कष्ट, हाय! सुंदर मुख को
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