sita vanvaas

‘पवनसुत चरणों में लपटाये
बोले बिलख–’नाथ! मैंने माता के दर्शन पाये

‘मुख द्युतिहीन क्षीण-तनु, दीना
मलिन-वसन, तरु-तल-आसीना
प्रभु के सतत ध्यान में लीना

रहती शीश झुकाये

‘स्वामी ! करें विलंब न पल-भर
दल-बल सहित लाँघकर सागर
माँ को मुक्त करायें लड़कर

रावण मुँह की खाये!

सुन फिर लीला हनूमान की
सुधि आयी लंका-प्रयाण की
विकल हुए प्रभु, सोच, ‘जानकी

अबकी कैसे आये!

पवनसुत चरणों में लपटाये
बोले बिलख–‘नाथ! मैंने माता के दर्शन पाये!