sita vanvaas
‘शिष्य लवकुश ये दोनों प्यारे
मुनि-कुल-दीपक नहीं, राम! ये हैं प्रिय पुत्र तुम्हारे
‘साथ सती सीता ने जाये
आश्रम में ही पलते आये
शस्त्र-शास्त्र के ज्ञान सिखाये
मैंने इनको सारे
‘पूर्ण हो चुकी शिक्षा इनकी
है जग-विदित परीक्षा इनकी
सब कर रहे प्रतीक्षा इनकी
बाहें विकल पसारे
‘राम! नहीं तुमसे ये कम हैं
तेज, रूप, गुण सब में सम हैं
बिंब तुम्होरं ही अनुपम हैं
जग-नयनों के तारे!
‘ शिष्य लवकुश ये दोनों प्यारे
मुनि-कुल-दीपक नहीं, राम! ये हैं प्रिय पुत्र तुम्हारे