sita vanvaas
‘नित्य देनी है अग्रिपरीक्षा
यही एक नारी के जीवन की है सच्ची शिक्षा
‘आज परीक्षा दूँ मैं फिर-से
तभी कलंक धुलेगा सिर से
स्वामी! क्यों दिखते अस्थिर-से !
थी इसकी न प्रतीक्षा!
‘धन्य हुई मैं प्रेम निबाहा
मुझको फिर अपनाना चाहा
मैंने भी निज भाग्य सराहा
क्यों लूँ पर यों भिक्षा!
‘बस ये पुत्र प्राण से प्यारे
जी दुखता है, करते न्यारे
रहें न अब ये बिना सहारे
है यह अंतिम इच्छा!
नित्य देनी हैं अग्निपरीक्षा
यही एक नारी के जीवन की है सच्ची शिक्षा’