sita vanvaas
विरह ही अंतिम सत्य भुवन का
महाशून्य में समा रहा हैं स्रोत निखिल जीवन का
प्रकृति सहस्रों वेश बदलती
क्षण-क्षण नव रूपों में ढलती
इस लीला पर, जो नित चलती
मोह वृथा है मन का
पर द्युति अभी हुई जो ओझल
बन आदर्श प्रेम का उज्वल
भोग करेगी पति सँग अविचल
चिर-सौभाग्य मिलन का
राम! हृदय में दुख मत पाओ
माया का आवरण हटाओ
धरो धैर्य, सबको समझाओ
शोक हरो जन-गण का
विरह ही अंतिम सत्य भुवन का
महाशून्य में समा रहा है स्नोत निखित जीवन का