tilak kare raghuveer

दर्पण कैसे उन्हें दिखाये!
दुर्बलतायें जो तेरा मन रहता सदा छिपाये!

उज्जवल परिधानों में सजकर
तू फूला फिरता निशि-वासर
भरी मलिनता है जो भीतर

कभी देख भी पाये!

जिसका मोह नहीं मन त्यागे
छूटे वह, कितना भी भागे!
सुलझेंगे अंतर के धागे

बालों के सुलझाये!

कवितायें रच प्यारी-प्यारी
समझे तू, जीता रण भारी
जीवन की कविता तो सारी

रही बिना ही गाये

दर्पण कैसे उन्हें दिखाये!
दुर्बलतायें जो तेरा मन रहता सदा छिपाये!