tilak kare raghuveer

दुनिया मेरी है या तेरी
क्यों फिर इसकी चिंता में काली हों रातें मेरी!

कोई उलटी चाल चलाये
यदि यह तेरी ओर न आये
डर क्या, यदि तू इसे बनाये

कभी राख की ढेरी!

त्रेता में था मैं कपिगण में
द्वापर में था वृन्दावन में
मैं तो तेरे साथ भुवन में

    देता हूँ बस फेरी

यही विनय है, मेरे मन को
यदि मोहित कर ले यह क्षण को
करने में विमुक्त चेतन को

तनिक न करना देरी

दुनिया मेरी है या तेरी
क्यों फिर इसकी चिंता में काली हों रातें मेरी!