tilak kare raghuveer

निर्जन सागर-वेला
एक-एक कर छोड़ गये सब साथी मुझे अकेला

कितने सीपी चुनते ऊबे
कितने हैं लहरों में डूबे
कितनों ने छोड़े मंसूबे

जब दुख गया न झेला

टिक न सके मेरे भी सपने
बहुत रुलाया हिम-आतप ने
पर क्या करूँ ! लिया सिर अपने

       मैंने आप झमेला

मिले न चाहे मुझको मोती
पर रह-रह इच्छा यह होती
दुनिया रहे भले ही सोती

तू न करे अवहेला

निर्जन सागर-वेला
एक-एक कर छोड़ गये सब साथी मुझे अकेला