tilak kare raghuveer

नींद कब सुख की आयेगी?
कब चिंता-डाकिनी छोड़ इस घर को जायेगी?

मन के द्वार खुले पा मेरे
बैठी है जो शैया घेरे
कब वह अर्धचन्द्र पा तेरे

मुँह की खायेगी?

तन की, धन की, जन की चिंता
गत, आगत जीवन की चिंता
कब तक यह क्षण क्षण की चिंता

मुझे सतायेगी?

कब निष्ठा दृढ़ होगी मन की
‘जो सँभाल रखनी कण-कण की
वह माँ कभी न अपने जन की

सुध बिसरायेगी?’

नींद कब सुख की आयेगी?
कब चिंता-डाकिनी छोड़ इस घर को जायेगी?