tujhe paya apne ko kho kar
अब तो अंग थक गये सारे
अब वह कहाँ शक्ति बाँहों में तोड़ूँ नभ के तारे !
गीत कभी गाये थे ऐसे
हुई भारती मुखरित जैसे
छेड़ूँ क्षीण कंठ से कैसे
सुर वे प्यारे-प्यारे
क्या-क्या ठाठ नहीं थे बाँधे
राग सभी जीवन के साधे
पर वे स्वप्न रह गये आधे
जो थे कभी सँवारे
जैसे-जैसे दिवस रहा ढल
किया -धरा सब लगता निष्फल
तेरे सिवा बढ़ रहे प्रतिपल
तम से कौन उबारे !
अब तो अंग थक गये सारे
अब वह कहाँ शक्ति बाँहों में तोड़ूँ नभ के तारे !