tujhe paya apne ko kho kar

बजेगी क्या धुन, तू ही जाने
पिछले पहर रात के आये जब तू मुझे लिवाने

धीरे-से रख हाथ शीश पर
जब यह कहे कि चलना है घर
क्या मैं सहज बढूँगा जग कर

तेरी पदरज पाने

या जो मुझको साँझ-सवेरे
स्वर्ण-जाल से रहते घेरे
तोड़ न पायेंगे सुर तेरे

उनके ताने-बाने

पर जो मुझको छोड़ रहे नित
मोह समझ निष्फल उनके हित
क्या न तुझे कर दूँगा अर्पित

मन यदि विरति न माने!

बजेगी क्या धुन, तू ही जाने
पिछले पहर रात के आये जब तू मुझे लिवाने