tujhe paya apne ko kho kar
प्रार्थना यदि न तुझे छू पाती
तो चिंता क्या! पड़े चोट पर चोट, खुली है छाती
उर पर यही चोट पड़ने पर
फूटा करते हैं मधुमय स्वर
यही चोट मुझको झंकृत कर
कविता है लिखवाती
करुण पुकारें उठ भूतल से
फिरतीं टकरा नभ-मंडल से
लोग लाख रोयें, दृगजल से
क्या होनी मिट जाती!
फिर मेरे ही लिए विधाता
कैसे भला नियम टल जाता
सुन-सुनकर मेरी दुख-गाथा
तुझे दया क्यों आती!
प्रार्थना यदि न तुझे छू पाती
तो चिंता क्या! पड़े चोट पर चोट, खुली है छाती