tujhe paya apne ko kho kar
भुला मत देना इसको, भाई!
बड़ी कठिनता से मैंने मरु में यह लता लगायी
रातों जग-जग अलख जगाया
सूली पर चढ़-चढ़कर गाया
छू मेरे ही दुःख की छाया
इसने रंगत पायी
कितने धूल बवंडर आये
हिम-आतप ने अंग सुखाये
पर उर का रस-श्रोत छिपाये
यह तम में मुसकायी
अब यह मेरी प्रतिछवि बनकर
युग-युग लहरायेगी भू पर
फूलों से लेना झोली भर
पा सुगंध मनचाही
भुला मत देना इसको, भाई!
बड़ी कठिनता से मैंने मरु में यह लता लगायी