tujhe paya apne ko kho kar
काल से डरें जिन्हें डरना है
सोने और जागने-सा मुझको जीना-मरना है
जिसको झलक मिली हो तेरी
उसको क्या है रात अँधेरी
दो दिन लगा शून्य में फेरी
रूप नया धरना है
शाश्वत अविनाशी है चेतन
व्यर्थ मृत्यु-भय चिंता-दंशन
तुझमें ध्यान लगा चलते क्षण
मन असंग करना है
माता, पिता, बंधु, गुरु, स्नेही
जैसे सखा गये कितने ही
मुझको भी हँसते-गाते ही
अंतिम सुर भरना है
काल से डरें जिन्हें डरना है
सोने और जागने-सा मुझको जीना-मरना है