tujhe paya apne ko kho kar

कैसे कह दूँ – ‘भ्रम था सारा!’
जब भी पग काँपे हैं मेरे, तूने दिया सहारा

जो अव्यक्त, अकाम, अगुण था
क्यों न हमीं-सा हुआ सगुण था
पल में मोह-मुक्त अर्जुन था

सुन जिसकी स्वर-धारा

मैं भी तो तेरा हूँ अनुगत
क्यों झेलूँ शंकायें शत-शत!
वर दे, पूर्ण करूँ जीवन-व्रत

इस जड़ तन के द्वारा

वंशी ले या धनुष चढ़ाये
धर कर रूप तुझे जो भाये
रह नित मेरे दायें-बायें

हो भी जग से न्यारा

कैसे कह दूँ – ‘भ्रम था सारा!’
जब भी पग काँपे हैं मेरे, तूने दिया सहारा