usar ka phool

तारक-शिशु

हलकी आभा से नभ ज्योतित करता
हँसता, कुछ विस्मित-सा, कुछ-कुछ डरता
पकड़ भागती किरणों का स्वर्णांचल
नन्‍हा तारक-शिशु किलकारी भरता

पीत-वसन में काँप रही, कृश काया
मुख पर झलमल श्याम अलक की छाया
रख चुपचाप इसे गोधूली-पथ पर
संध्या गयी सिसकती, तम घिर आया

यह दुर्भाग्य-विषमताओं का मारा
अपने ही दुख से अनजान बिचारा
नहीं जानता ढंग अभी रोने का
नहीं जानता कटु जीवन की कारा

आओ परियो! इसे सुलाने आओ
मलयानिल! हलकी थपकी दे जाओ
उढ़ा श्वेत, झीनी, मेघों की चादर
गाओ, री दिग्वधुओ! लोरी गाओ

याद न इसको अपनी माँ की आये
विकल दूध के लिए न कर फैलाये
तुहिन-बिंदु बरसाओ रजनी-रानी!
सुखद चाँद-सा मुखड़ा सूख न जाये

1941