usha

बहने दो जीवन को अबाध
‘पलकें गिरती, मन रोता है, अकुलाती तन्मयता अगाध

उड़ चले उमड़कर स्नेह-सरित
डूबें अग-जग के छोर त्वरित
मैं साँस-साँस में हरित-भरित
यह सजल जलद-छवि सकूँ बाँध

नस-नस में शत बिजलियाँ भरीं
पीड़ा मानस के तट गहरी
रुक, ठहर, क्षणिक ओ मधु-लहरी
पूरे तो मन की तनिक साध

मृग-से बिँध रहे प्राण प्रतिपल
तनु-लोम तीर-से बने सकल
दलमलता मृदु ममता के दल
यह कौन छिपा बन क्रूर व्याध?

बहने दो जीवन को अबाध
पलकें गिरती, मन रोता है, अकुलाती तन्मयता अगाध