usha

फिर होगा जीवन का विचार
पहले तो कुसुमित यौवन को दुलरा लेने दो एक बार

सूनी संध्या के मौन पथिक!
तम घिरता आता है दिक्‌-दिक्‌
मेरी पलकों में बैठ तनिक
सुन तो लो प्राणों की पुकार

द्वाभा का शशि हँस रहा क्रूर
तुम सपनों-से क्यों दूर-दूर?
मैं आज बिखरकर बनूँ चूर
कल गूँथूँगी चेतना-हार

बलि देकर भी अपना निजत्व
मैं बाँध सकूँगी यह परत्व
चल प्रणय, चपल-चिर हृदय-तत्त्व
पल की छवि, पल भर का श्रृंगार

फिर होगा जीवन का विचार
पहले तो कुसुमित यौवन को दुलरा लेने दो एक बार