usha

ऐसी मेरे मन की भाषा
चिर-रिक्त अहं को प्लावित कर, लो, चली उमड़ती अभिलाषा

दृग में अग-जग की छवि भर लूँ
या निज को ही जगमय कर दूँ
मन कहता ‘मैं ही ईश्वर हूँ
दृढ़ लिये अमरता की आशा

साँसों में बजता द्वैत राग
जीवन त्रिशंकु-सा रहा जाग
मैं जड़-चेतन का शून्य भाग
पी कर भी रहता चिर-प्यासा

चित्रक – तूली – आधार – हीन
यह चित्र सतत बन-बन विलीन
मैं चिर-पुराण या चिर-नवीन!
मैं कुछ या केवल परिभाषा?

ऐसी मेरे मन की भाषा
चिर-रिक्त अहं को प्लावित कर, लो, चली उमड़ती अभिलाषा