usha
‘बावली ! कुंजों में मत लोट
आ भ्रमरी! पुतली कर रक्खूँ तुझे पलक की ओट’
बीतेगी जब रात सुरभि ले आयेगा प्रिय तेरा
ज्ञात न पर मेरे जीवन का होगा कभी सवेरा?
तुझसे तो भारी है, पगली! मेरे दुख की पोट
प्रेम गया, गृह-परिजन छूटे, अपना हुआ पराया
निर्मोही को मोह न फिर भी, हाय, तनिक-सा आया
फूलों के तन पर दे बैठा कठिन वज्र की चोट
‘बावली ! कुंजों में मत लोट
आ भ्रमरी! पुतली कर रक्खूँ तुझे पलक की ओट’