vyakti ban kar aa

कितना असहाय हूँ मैं
कि तेरे बिना
एक पग भी नहीं चल सकता!
तू न चाहे
तो मेरे मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल सकता!
कभी सोचता हूँ कि
जैसे हम सब सृष्टि-नियमों से बँधे हैं
तू भी परवश कहीं वैसा ही तो नहीं है!
तुझे चलानेवाला कोई अन्य
भावना शून्य यंत्र जैसा ही तो नहीं है,
अन्यथा मुझे तड़पता देखकर
क्या तू यों चुपचाप बैठा रहता?
हीरे-मोतियों का राजमुकुट पहने,
मयूर-सिंहासन पर ऐंठा रहता?
कुछ तो तेरी चुप्पी का रहस्य है
जिसे तू बताता नहीं है,
मुझे दूर से देखता तो रहता है,
मेरे पास आता नहीं है।