vyakti ban kar aa
तू इतना दुखी और उदास क्यों है,
मेरा हाथ तो सदा तेरी पीठ पर रहता है !
तूने मुझे दूर समझ लिया है, बस इतनी-सी बात है,
नहीं तो तेरा हर श्वास मेरी ही कथा कहता है।
तेरे ही लिये तो इस नीलाकाश में मैंने
तारों की ये जगमग बस्तियाँ सजा दी हैं,
शून्य ब्रह्मांड में द्वार पर द्वार खोल दिये हैं,
अनंत अंतरिक्ष में सीढ़ियों पर सीढ़ियाँ लगा दी हैं।
और अपनी धरती की ओर भी देख
जिसे मैंने तेरा पालना बनाया है,
हरी-हरी मखमल की कालीनों से मढ़कर
चाँद-सूरज की बाँहों से झुलाया है।
तू जो भी माँगता है,
यह स्नेहमयी जननी तुझे दे देती है,
तेरी समस्त चिंतायें भुलाकर
तुझे अपनी गोद में ले लेती है।
तू इसके अंगों को ही नहीं रौंदता,
इसका आँचल भी फाड़ डालता है;
कभी इसकी उँगलियाँ चबा जाता,
कभी इसकी रोमावलि उखाड़ डालता है;
फिर भी यह उदार-मना
तुझ पर मुस्कुराती रहती है,
अपने केसरिया खेत और दूधिया नदियों से
तेरी भूख-प्यास मिटाती रहती है;
तेरा कौन-सा ऐसा संकट है
जो इसने अपने ऊपर नहीं झेला है!
ऐसी ममतामयी माँ की गोद में रहकर भी
क्यों समझता है, तू अकेला है!