vyakti ban kar aa

मेरे पिता!
मुझे क्षमा कर दे कि मैंने दुखों की अतिशयता में
जीवन को खंड-खंड कर के देखा है,
बिंदु-बिंदु में उसे बाँट दिया
जो एक आदि-अंत-हीन वर्तुल रेखा है।

मुझे क्षमा कर दे कि मैंने शव के गले में
फूलों का हार पहनाया है,
जिस वाणी से तेरा गुण-गान करना था,
उससे अपना गौरव बढ़ाया है।

मुझे क्षमा कर दे कि मैंने अपने अभावों को
तेरी कृपा का वरदान नहीं समझा,
जीवन भर उनसे जूझता तो रहा,
उन्हें तेरे प्रेम का प्रमाण नहीं समझा।

मुझे क्षमा कर दे कि मैंने तेरी पूजा के फूलों को
हाट में ले जाकर बेच दिया,
जो रत्न हीरे-पन्नों से भी अधिक मूल्यवान थे,
उन्हें कंकर-पत्थरों से बदल लिया।

मुझे क्षमा कर दे कि मैं अपनी भूलों के लिये तो
सदा तुझसे क्षमा माँगता रहा
पर दूसरों को वही भूलें करते देखकर
झट सूली पर टाँगता रहा

मुझे क्षमा कर दे कि मैं आप ही
अपने सिद्धांतों पर खरा नहीं उतर सका,
महापुरुषों की जयजयकार तो बहुत की,
महापुरुषों का अनुसरण नहीं कर सका।

मुझे क्षमा कर दे कि मैंने तेरी दी हुई वस्तु
अपनी कहकर विक्रय के लिए धर दी,
जहाँ मात्र भारवाहक की मजदूरी चाहिए थी,
मूल्य की कुल राशि ही अपने नाम कर ली।’