vyakti ban kar aa
श्वेत-श्याम अश्वों से जुते आकाश के नीले रथ पर
तू कहाँ जा रहा है ?
पहियों से लकीर-सी बनाता हुआ,
तारों की धूल उड़ाता हुआ,
मुझे तेरा गरुड़-केतन नजर आ रहा है।
क्या तू मुझे भी अपने साथ बिठायेगा!
इस तंग कोठरी से बाहर ले जायेगा!
या केवल यों ही ललचा रहा है!
बाँहें फैला-फैलाकर भरमा रहा है !