vyakti ban kar aa
सूरज और चाँद के पहियों पर दौड़ता हुआ
यह रथ कहाँ जा रहा है ?
श्वेत-श्याम अश्वों से जुता हुआ,
जीवन और मरण की घाटियाँ लाँघता, यह ज्योतिकेतन
पल भर भी कहीं ठहर नहीं पा रहा है।
यह भी पता नहीं
कि यह कब, कहाँ से रवाना हुआ
और इसे कौन, किस लिए सतत चला रहा है !
क्या इसमें बिठाकर
तू मुझे अपने पास बुला रहा है?
क्या तेरा राजप्रासाद
प्रतिपल निकट आ रहा है?