vyakti ban kar aa
संग्रह अच्छा है,
परंतु त्याग उससे भी अच्छा है।
फूल और सुगंध,
चाँद और चाँदनी,
रूप और प्रेम,
इनमें कौन उत्तम है, कौन मध्यम,
कहना कठिन है;
एक आषाढ़ की रात है
तो एक सावन का दिन है।
फिर भी इतना कहा जा सकता है
कि संग्रह पथ है, त्याग गंतव्य है,
एक वर्तमान है, दूसरा भवितव्य है;
संग्रह नदी का तीर है,
त्याग जल का प्रवाह है।
एक सीमित है, दूसरा अथाह है।
फूल का निजत्व-विसर्जन ही सुगंध है,
चाँद का सुधावर्षण ही चाँदनी है;
रूप का आत्मसमर्पण ही प्रेम है।
फूल इसीलिये वरणीय है कि
वह संसार को सुगंध से भर देता है,
चाँद इसीलिए रमणीय है
कि वह धरती को सुधासिक्त कर देता है,
हृदय में प्रेम की तरंगें उपजाने के कारण ही,
रूप में लुभावनापन है,
और संग्रह भी इसीलिए स्पृहणीय है
कि वह हमें त्याग का अवसर देता है।