बलि-निर्वास
- कल्प वृक्ष की सबसे ऊँची शाखा पर से
- दम्भपूर्ण अधिकार, स्वार्थ या चिर-अबाध वासना-विलास
- राई में सुमेरु ज्यों विशाल वट बीज में हो
- वांछित जो माँगें आप, सौंवे बलिकाल में
- यदि स्वर्ग कहीं है त्रिभुवन में
- जीवन-संध्या में आज, पथिक तुम थके और हारे-से हो
- जीवन वसंत सा हुआ
- मधुप ! तुम भूल गए रस-केलि
- मधुप तुम कबसे हुए विरागी
- मधुकर यह मधुवन क्यों भूले
- मधुप तुम भूले प्रीति पुरातन
- मना लूँ मन को तो, सजनी !
- मधुकर तुम हो बड़े प्रवीण
- सखी री! समय-समय की बात
- अवधि में क्या हो, किसे पता !
- सखी री ! इतने बैरी तेरे
- अमरे ! तुझसे अच्छी काशी
- सखी री, ! बीत गये दिन कितने
- विरह कि यह तो पीर नहीं
- मैंने जो व्रत-नेम किये
- फड़कती क्यों यह दायीं आँख
- नयन के शर-संधान किये