कच-देवयानी
- मैं क्या उत्तर दूँ! जीवन में जिसने यह आग लगायी है (प्रथम सर्ग)
- उर के आवेगों से विह्वल कच ने देखी वह छवि अजान (प्रथम सर्ग)
- यह कैसा झूठा सत्य, भीरु वीरत्व, सदय निर्दयता है! (द्वितीय सर्ग)
- तुम खेल सरल मन के सुख से, अब छोड़ मुझे यों दीन-हीन (द्वितीय सर्ग)
- मानस के मंदिर में जलती अब भी कैसी यह स्नेह-शिखा
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