कच-देवयानी

  1. मैं क्या उत्तर दूँ! जीवन में जिसने यह आग लगायी है (प्रथम सर्ग)
  2. उर के आवेगों से विह्वल कच ने देखी वह छवि अजान  (प्रथम सर्ग)
  3. यह कैसा झूठा सत्य,  भीरु वीरत्व, सदय निर्दयता है! (द्वितीय सर्ग)
  4. तुम खेल सरल मन के सुख से, अब छोड़ मुझे यों दीन-हीन (द्वितीय सर्ग)
  5. मानस के मंदिर में जलती अब भी कैसी यह स्नेह-शिखा