रेत पर चमकती मणियाँ
- अधिक दिनों तक जीना भी
- अपने कुल की मर्यादा भुलाकर
- अपने पुरुषार्थ का अर्जन ही
- अव्यक्त को किसी व्यक्त के माध्यम से ही
- अस्वीकृति कि सीमा कहाँ तक है
- आगे-पीछे, दायें-बायें
- आत्महत्या करने के पूर्व कोई भावुक किशोर
- आपको तो सदा आगे ही आगे बढ़ना है
- ओ मेरे मन ! देखना है तेरा गर्व
- इन अनंत-अनंत रूपों में
- एक अगला कदम ही यथेष्ट है मेरे लिए
- एक वह कलाकार है
- अँधेरा कहाँ है?
- आँखें बंद करके आप किसी भी बांकी चितवन के
- कसता जा रहा है प्रकाश का घेरा
- कुछ समस्याओं के समाधान के लिए तो
- कुछ ज्ञान, कुछ भावना
- कोई कितनी भी आड़ क्यों न लगाये
- कोयल को यह चिंता कब सताती है
- चमत्कार नहीं होगा
- चिन्तक के लिये अद्भुत
- जब तक ह्रदय में
- जब तक जरा-सी भी साँस रहती है
- जहर को पीना ही नहीं, पचाना पड़ता है,
- जीवन एक कला है
- जीवन क्या है
- जीवन महान है
- जीवन सीधी नहीं वर्तुल रेखा है
- जीवन हमें इठलाने का अवसर नहीं देता है
- जो धीरे-धीरे अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे हैं
- जैसे निद्रा के पूर्व
- जो सपनों में नहीं जीता है
- तेरे समाप्त कह देने से ही
- देश और काल ही नहीं
- दो कवियों की आपस में तुलना नहीं करनी चाहिये
- पत्तों के झड़ जाने से
- पत्र और शाखाएं छांटने से क्या होगा !
- पहले तो जीवन के अनमोल मोती
- प्रभात में चिड़ियों का चहकना अच्छा लगता है
- फूल को तेजी से खिलते देखकर
- फूलों की सेज पर सोते रहने से
- बहुत फूँक-फूँक कर कदम रखते हुए ही
- बड़ी मोहक लगती है
- बाग में एक स्थान पर बैठ कर
- मस्तक पर छात्र और किरीट धारण कर लेने से ही
- माना कि विचार विद्युत्-से चमक कर
- माना कि अपना सबकुछ लुटाकर
- मेरा कुल पढ़ा-लिखा व्यर्थ हो गया
- मैं उम्र में शेक्सपियर से बड़ा हो गाया हूँ
- यदि कोई झोली न फैलाये
- यदि सेवा करने के बाद
- यदि बचपन में बाँधी प्रेम की डोर
- यह सच है कि हम धरती को
- यह सत्य है कि हमें धरती से
- यह संसार
- यात्रा का उल्लास तभी तक है
- यों तो बाग़ का एक-एक फूल
- रेत पर चमकती मणियाँ
- विद्या, बुद्धि और चरित्र का सम्मान ही
- सागर कि क्षारता-हरण करने को निकली गंगा
- सागर के ज्वर पर थिरकने के बाद
- सारी आयु हम अपने ही विचारों की कैद में रहते हैं
- सूरज, चाँद और तारे ही नहीं
- सोने की पत्तरों से मढ़ देने से ही
- संग्रह करते जाना तो नशा है
- संत वही है
- हर फूल के मूल में कोई काँटा छिपा है
- हरित-तृण चरते गलि-पशु के लिए
- हिमपात में भी
- हे कविता-रवि !
- हे भर्त्रहरि